Posted on May 15, 2018 at 11:55 AM
वट सावित्री व्रत
इस साल 2018 में वट सावित्री व्रत 15 मई 2018, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। अमावस्या तिथि का आरंभ 14 मई 2018, सोमवार को 19:46 से प्रारंभ होगा और इसका समसपन समापन 16 मई 2018, बुधवार को 17:17 पर होगा। ये पर्व ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। यह महिलाओं का सौभाग्य कामना से रखा जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस दिन सत्यवान सावित्री कथा पड़ कर यमराज की पूजा की जाती है और यह व्रत रखने वाली स्त्रियों सावित्री की ही तरह अखंड सुहाग की कामना करती हैं। सावित्री ने इसी दिन अपने तप के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज से जीवित प्राप्त कर लिया था।
कैसे करें पूजा
इस व्रत को करने के लिए सर्वप्रथम वटवृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान और भैंसे पर सवार यम की प्रतिमा स्थापित करके पूजन करना चाहिए। इसके बाद बरगद की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए। पूजा के लिए रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप होनी चाहिए। जल से वटवृक्ष को शीतल करने के बाद उसके चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर कम से कम तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके पश्चात सत्यवान सावित्री की कथा सुननी चाहिए और पश्चात भीगे हुए चनों का प्रसाद बड़ों और मान्य को देकर आर्शिवाद ग्रहण करें।
वट सावित्री व्रत
इस साल 2018 में वट सावित्री व्रत 15 मई 2018, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। अमावस्या तिथि का आरंभ 14 मई 2018, सोमवार को 19:46 से प्रारंभ होगा और इसका समसपन समापन 16 मई 2018, बुधवार को 17:17 पर होगा। ये पर्व ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। यह महिलाओं का सौभाग्य कामना से रखा जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस दिन सत्यवान सावित्री कथा पड़ कर यमराज की पूजा की जाती है और यह व्रत रखने वाली स्त्रियों सावित्री की ही तरह अखंड सुहाग की कामना करती हैं। सावित्री ने इसी दिन अपने तप के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज से जीवित प्राप्त कर लिया था।
कैसे करें पूजा
इस व्रत को करने के लिए सर्वप्रथम वटवृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान और भैंसे पर सवार यम की प्रतिमा स्थापित करके पूजन करना चाहिए। इसके बाद बरगद की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए। पूजा के लिए रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप होनी चाहिए। जल से वटवृक्ष को शीतल करने के बाद उसके चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर कम से कम तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके पश्चात सत्यवान सावित्री की कथा सुननी चाहिए और पश्चात भीगे हुए चनों का प्रसाद बड़ों और मान्य को देकर आर्शिवाद ग्रहण करें।
वट पूजा और व्रत का स्वरूप
इस बार ये पर्व मलमास के प्रारंभ होने के ठीक पहले पड़ रहा है। वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है, जिसे कहीं बट कहीं बरगद के नाम से जाना जाता है। इस में व्रत तीन दिवसीय उपवास रखा जाता है और यह उपवास भारत के विभिन्न अंचलों में भिन्न भिन्न तरीके से पाया जाता है। ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक व्रत रखा जाता है और कुछ स्थानों पर जैसे उत्तर भारत में एक दिन का व्रत रखा जाता है।
मद्र देश के राजा अश्वपति को पत्नी सहित सन्तान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन करने के पश्चात पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। फिर सावित्री के युवा होने पर एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब वह सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं।
इसके बाद नारदजी की बताए समय के कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। ऐसे जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। फिर भी पीछे आता देख दूसरे वर में उन्हें अपने ससुर का छुटा राज्यपाठ वापस मिल गया। आखिर में सौ पुत्रों का वरदान मांगकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। ऐसे सावित्री के पतिव्रत धर्म और विवेकशील होने के कारण उन्होंने न केवल अपने पति के प्राण बचाए, बल्कि अपने समस्त परिवार का भी कल्याण किया।